अभी तो सारा आसमान बाकी है
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” यह श्लोक हमने बहुत बार सुना है और हम गर्व करते हैं अपने शास्त्रों पर जहां ऐसे कथन मिलते हैं। हमारे शास्त्र यूं भी पढ़ने लायक हैं क्योंकि उन्हीं से यह भी पता चलता है कि भारतीय समाज कैसे हमेशा से ही नारी जाति के प्रति दोगला रवैया अपनाता रहा है। एक ओर जहां श्री राम(जिन्हें हम भगवान की उपाधि देते हैं) अपनी पत्नी को बचाने के लिए लंका तक जा पहुंचे थे, बाद में उन्होंने ही उस पत्नी का त्याग कर दिया क्योंकि वह नारी अग्नि परीक्षा देकर भी अपवित्र रह गई थी और उस तथाकथित “राम राज्य” में रहने योग्य नहीं थी।क्या यह संपूर्ण नारी जाति के प्रति अपराध नहीं था? क्या रावण के बराबर का अपराध राम ने नहीं किया?
फिर द्रोपदी- नारी जाति के इतिहास का सबसे बड़ा अपमान सहा और उसके प्रश्नों का उत्तर बङे – बङे
धर्म के ठेकेदार न दे पाए। ये दोनों उदाहरण इसलिए आवश्यक हो जाते हैं क्योंकि ये दोनों महाकाव्य हमेशा से ही भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालते आए हैं। यहीं से एक प्रश्न उठता है कि जब स्वयं भगवान जो पौराणिक रूप से पृथ्वी पर होते हुए इन अपराधों को नहीं रोक पाए तो अब कौन रोक सकता है, यह प्रश्न सभी ने कभी न कभी सुना है। क्या यह प्रश्न किसी भी नारी के लिए करारे तमाचे से कम है? क्या वह स्वयं अपने बूते पर अपनी रक्षा नहीं कर सकती? यदि नहीं तो उन्हें ऐसा करना सीख लेना होगा।
यह भी सत्य है कि आज की नारी के लिए यह प्रश्न भले ही सरल हो पर इतिहास में ऐसा नहीं रहा है।“आरक्षण” फिल्म में सैफ अली खान का किरदार कहता है कि ऊंची और नीची जातियों का मुकाबला नहीं हो सकता क्योंकि उनकी शुरुआत कभी एक सी नहीं रही। इस हिसाब से, नारियों ( चाहे सवर्ण हो या दलित) को तो कभी दौङ में हिस्सा लेने के ही लायक नहीं समझा गया, क्या कोई जाति इससे अधिक पिछङी हो सकती है? नारियां आज बहुत आगे तक पहुंच रहीं हैं लेकिन यह हमारी सीमा नहीं है।
लॉकडाऊन का कितना बड़ा फायदा हुआ है कि सभी नारी- विरोधी अपराध रूक गए हैं।दो दिन पहले एक राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता ने मेघनाद -वध पर समस्त देशवासियों को बधाई दी थी तो उसी क्रम में आज द्रोपदी- वस्त्रहरण पर वे क्या कहेंगे? कुछ भी कहने से पहले उन्हें यह जांच लेना चाहिए कि संसद में अभी कितने ऐसे नेता बैठे हैं जिनके खिलाफ नारी-विरोधी अपराधों के आरोप हैं। यहां बात किसी पार्टी विशेष की नहीं क्योंकि सरकार जो भी रही हो , संसद में महिला आरक्षण का मुद्दा सालों से लटकता रहा है, नारी सुरक्षा के लिए नियमों में सुधार व न्याय में तेज़ी की आस हर नारी को है। किंतु हमारी आदत वह हो गई है कि किसी अपराध के बाद कुछ दिन मोमबत्तियां जलाकर शांत हो जाते हैं।
समाज में दुर्योधन अभी समाप्त नहीं हुए हैं। जो किसी नारी को खुद से आगे जाते नहीं देख सकते और किसी भी हद तक गिर कर उसे पीछे खींचना चाहते हैं, उन केंकङों को जवाब देते जाना अभी ज़रूरी है। इतिहास में सशक्त और विदूषी नारियां भी बहुत हुईं हैं पर अभी ऐसे और कई उदाहरण तैयार होने बाकी हैं।अभी वह समाज बनना बाकी है जहां कोई पुरुष ‘प्रधान’ न हो, न कोई नारी ही सर्वोपरि हो, पर सब साथ मिलकर चलें। अभी तो शुरुआत है।
This Article is written by Janhvi Kaushik, student of 2nd year, in B.A.L.L.B., at M.D. University Rohtak.
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